सच्चे मन से सिद्दपीठ ढुण्ड़ेश्वर महादेव आने वाले भक्तों की मनवांछित कामना होती है पूर्ण

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ढुण्ड़ेश्वर महादेव (शेमगढ़) भगवान भोले नाथ के प्रिय सिद्ध पीठों में से एक हैं जहाँ सच्चे मन, कर्म और वचन से शिव की उपासना करने वाले भक्तों की मनवांछित कामना पूर्ण होती हैं।

चिन्हित किये गये जगह पर कुदरती स्थापित ढुण्डेश्वर महादेव की प्रतिमा

ऋषिकेश श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित ऐतिहासिक नगर कीर्तिनगर से डांग-धारी मोटर मार्ग पर 22 कि0मी0 की दूरी पर शोभायमान इस प्राचीन शिवालय में एक प्राकृतिक गुफा के अन्दर प्रदत्त स्वतः स्फूर्त शिवलिंग तो हैं ही, इस पूरे मन्दिर के आस-पास कई ऐंसी अद्भुत गुफाऐं, पेड़ पाषाण शिलाएं और कला कृतियां मौजूद है, जो आज भी शोध का विषय हैं। मन्दिर और गुफा के ठीक ऊपर 500 फीट की ऊँचाई वाले विकट पहाड़ी पर स्वतः निर्मित पत्थर की बनी एक प्रतिमां मौजूद हैं, जिन्हें शिव भक्त भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा बताते हैं। 

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कई सौ वर्ष पूर्व ढुँड़ी नाम के एक ऋषि तपस्या के लिए एकान्त की खोज करते-करते यहाँ पहुंच गए।  उन्हें तपस्या के लिए यह निर्जन स्थान बहुत पसन्द आया और वे यहीं एक वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने लगे।

तपस्या करते-करते जब बहुत लंबा समय बीत गया, तो जिस वृक्ष के नीचे ऋषि तपस्या कर रहे थे। वहां एक गुफा ने आकार लेना शुरू कर दिया और एक दिन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें साक्षात दर्शन देकर कहा, ऋषिवर मैं तुम्हारे तप, त्याग और तपस्या से प्रसन्न हुआ।  मांगो क्या चाहिए, ऋषि भी भोलेनाथ के दर्शन पाकर गद्गगद हो गए।  उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा।  उनके आँखों से अश्रुधारा बहने लगी और बोल बैठे “प्रभु! आपके दर्शन से मेरी तपस्या सार्थक और जीवन धन्य हो गया है अब भला और मुझे क्या चाहिए। फिर भी अगर आप कुछ देना चाहते हैं, तो यह वर दीजिए कि जिस स्थान पर बैठ कर मैंने आपकी महिमा का ध्यान और गुणगान किया हैं, वह स्थान आपके प्रिय स्थलों में से एक हो जाए।

भगवान भोलेनाथ ने तथास्तु कहकर ढूँढी ऋषी को वर दे दिया, कि यह स्थल मेरे प्रिय स्थलों में से एक होगा और तुम्हारे नाम से ही जाना जायेगा। और मेरी कृपा व महिमा से युगों-युगों तक ख्याति अर्जित करेगा।  देखते ही देखते भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो गए और गुफा के अन्दर एक प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित हो गया। इसके साथ ही पहाड़ी पर ढूँढी ऋषी की प्रतिमा ने आकृति ले ली। 

इस पवित्र स्थली की चर्चा से ही विकासखण्ड़ कीर्तिनगर का यह पूरा पट्टी क्षेत्र ढुण्ड़सिर क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। कई ऋषियों और मुनियों ने इसके बाद यहाँ तपस्या कर भगवान शकर के दर्शन कर उनकी कृपा को प्राप्त किया।यहां के स्थानीय लोगों की इस स्थली में आस्था तब और भी गहरी और अटूट होने लगी, जब उन्हें कई प्रकार के चमत्कारिक घटनाएँ यहां देखने और सुनने को मिली। 

यहाॅं के कुछ बुजुर्ग बताते हैं, कि लगभग ड़ेढ़ सौ वर्ष पूर्व इस क्षेत्र के एक गाव का व्यक्ति त्वचा सम्बन्धी किसी असाध्य रोग से ग्रसित हो गया, परिजनों के द्वारा उसकी उपेक्षा की जाने लगी, पत्नी उससे कटने लगी, बहुएं ताना मारती, नाती-पोते उसके नजदीक नहीं फटकते। ऐंसी अगाध अवशाद की दशा में वह आत्म हत्या करने के मकसद से आधी रात को इस मन्दिर के पास एक पेड़ की टहनी पर फांसी लगा लटकने लगा, बताते हैं कि जैंसे ही उसने सिर फांसी के फन्दे में ड़ाला वहाँ एक साधु प्रकट हो गया। साधु ने उस व्यक्ति की व्यथा सुनी और कहा कि मैं तुम्हें तुम्हारे इस असाध्य रोग से मुक्त कर सकता हूँ। लेकिन शर्त एक हैं, कि यह राज तुम्हारे और मेरे अलावा तीसरे व्यक्ति को पता नहीं लगना चाहिए। व्यक्ति ने साधु को वचन दे दिया कि इस राज को वह अपने तक ही सीमित रखेगां। साधु ने उस ब्यक्ति के षरीर पर पानी के छींटे मारे और एक जडी उसे खाने को दी। देखते ही देखते उस व्यक्ति का रोग गायब हो गया और वह साधु भी अदृश्य हो गया। वह साधु कोई और नही बल्कि साक्षात महादेव ही थे। इसके बाद जैंसे ही उसके परिजनों और गांव वालों ने उसे देखा तो सब भौंचक्के से रह गए। सबके लाख पूछने पर भी उस व्यक्ति ने कुछ नहीं बताया। काफी दिनों तक तो सभी जानने का प्रयास करते रहे, लेकिन उसके अटल रवैये को देखने के बाद लोगों ने उसे पूछना ही छोड़ दिया। लेकिन एक दिन रात को सोने से पहले उसकी पत्नी ने उसे राज बताने को बेहद मजबूर कर दिया कि आखिर वह रातों-रात ठीक कैंसे हो गया? उसने यह सोचकर पत्नी को सारी घटना बता ड़ाली कि वह बाहर वालों से नहीं बल्कि सिर्फ स्वयं की पत्नी को ही तो बता रहा हैं। अगले दिन प्रातः जब नींद से जागा तो उसने देखा कि उसका रोग मुक्त शरीर फिर से रोग ग्रसित हो चुका हैं। इस प्रकार की न जाने कितनी चमत्कारिक घटनाएं और किवदंतियां इस पवित्र स्थान से जुड़ी हुयी हैं। यहां आज भी रात्रि के समय में षेरों की गर्जना, हाथियों की चिंघाड़ और ढ़ोल-नगाडों की ध्वनियां आसानी से सुनी जा सकती हैं। 

पांच-छः दशक पूर्व तक यहां कई साधु लम्बी-लम्बी अवधियों तक रहे, लेकिन वर्तमान समय में आने वाले साधु बमुश्किल 2-4 माह भी यहाँ नहीं रह पाते। भोलेनाथ की इस पावन स्थली के बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर कोई सच्चा और योगी पुरूष ही लम्बे समय तक रह सकता हैं। ढ़ोंगी और आड़म्बर युक्त तथा कथित महात्मा यहां दो-चार दिन भी नहीं टिक पाते हैं। इस सिद्ध शिव स्थली के बीचों-बीच एक छोटी सी नदी जिसे स्थानीय भाषा में गाड-गदेरा कहते हैं, प्रवाहित होती है। प्राचीन मतानुसार वह “बारूणी गंगा” हैं, जो ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित पावनी अलकनन्दा नदी में जाकर मिलती हैं। इस पवित्र स्थली के नाम से ही कीर्तिनगर स्थित संगम को “ढुण्ड़प्रयाग” के नाम से जाना जाता हैं। यहाँ भी एक मन्दिर “ढुण्ड़़ेश्वर महादेव” के नाम से स्थापित किया गया हैं। ऐंसा नहीं है कि यह सारी बातें स्थानीय बुजुर्गों से सुनी गयी कथाओं के आधार पर लिखी गयी हों, इस पावन सिद्धपीठ का जिक्र केदारखण्ड़ जैंसे ग्रन्थ में भी पढ़ने को मिलता हैं। आज से आठ-दस वर्ष पूर्व तक यह सिद्ध पीठ सड़क मार्ग से अछूता था, जिसके चलते इस स्थान का वैंसा विकास नहीं हो पाया, जैंसी इसकी दरकार थी। हालाँकि अभी भी श्रद्धालुओं को करीब 200 मीटर की दूरी पैदल चलकर यहां पहुंचना होता हैं। लेकिन सड़क मार्ग के समीप आ जाने से अब इस स्थान के समुचित विकास की संभावनाएं मजबूत होती दिखाई पड़ती हैं। नजदीक गांवों के साथ-साथ अन्य जनपदों और पंजाब व हरियाणा जैंसे राज्यों से भी श्रद्धालु यहां पहुंचने लगे हैं। खास बात यह हैं, कि जो भी महादेव भक्त एक बार यहाँ आ जाता हैं, दोबारा आना नहीं भूलता।

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भगवान सिंह चौहान(संपादक) मोबाइल: 7060969229, 9258205597